कोहिनूर का असली इतिहास, जब पाकिस्तान ने भी किया था दावा
'कोहिनूर' का अर्थ हैं - आभा या रोशनी का पर्वत कोहिनूर हीरा किसी समय भारत की शान मे 4 चाँद लगता था , और विश्व का सबसे बड़ा हीरा था ,
‘कोहिनूर’ का अर्थ हैं – आभा या रोशनी का पर्वत कोहिनूर हीरा किसी समय भारत की शान मे 4 चाँद लगता था , और विश्व का सबसे बड़ा हीरा था , भारत में गोलकुंडा की खान से मिला यहाँ श्वेत वर्ण का हीरा मूल रूप से 793 कैरेट का था, अब यह 105.6 कैरेट का रह गया है, जिसका वजन 21.6 ग्राम है, कोहिनूर की कीमत आज लगभग 70000–84000 करोड़ है , यह कई यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया
क्या है कोहिनूर का असली इतिहास
हिन्दू कथाओ के अनुसार कोहिनूर का प्रचीन नाम जो संस्कृत इतिहास में स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। ऐसा कहा जाता हैं कि , 3200 ई.पू भगवान श्री कृष्ण ने यह स्यमंतक मणि, जामवंत से ली थी , जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में भगवान श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। कोहिनूर से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, परन्तु कौन सी इसकी है, कहना मुश्किल है।
अब बात अगर कोहिनूर हीरे के प्रामाणिक साक्ष्य की करे तो यह गोलकुंडा जो हैदराबाद के दक्षिण में 11 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यह भारत के तेलंगना राज्य में आता है। यह प्राचीन और प्रसिद्ध किला है सन 1730 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र ज्ञात था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई।
कोहिनूर हीरे का मुग़ल इतिहास
मुग़ल शासको बाबर एवं हुमायु, दोनों ने अपनी आत्मकथाओं में कोहिनूर हीरे के उद्गम के बारे में लिखा है। कछवाहा शासक जो की ग्वालियर मे राज करते थे यह हीरा पहले इसी दरबार की शान हुआ करता था , जिनसे यह तोमर वंश के राजाओ के पास पंहुचा , सिकन्दर लोदी ने विक्रमादित्य जो की अंतिम तोमर शासक थे उन्हें हराकर दिल्ली में बंदी बना लिया । और हीरा आपने साथ दिल्ली ले गया, कुछ समय पश्चात राजकुमार हुमायुं ने सिकन्दर लोदी और विक्रमादित्य के बीच मध्यस्थता करके उसकी सम्पत्ति वापस दिलवा दी, और उसे छुड़वा कर, मेवाड, चित्तौड़ में पनाह लेने दिया।
विक्रमादित्य ने हुमायुं के प्रति आभार दीखते हुए अपना बहुमूल्य हीरा, जो शायद कोहिनूर ही था, हुमायुं को भेंट स्वरुप दे दिया, हुमायुं से शेरशाह सूरी , शेरशाह सूरी से उसके पुत्र जलाल खान तथा जलाल खान से उसके साले तथा अन्य मुग़ल शासको तक हीरे की यात्रा चलती रहती, हुमायुं के पुत्र अकबर ने कभी हीरे को अपने पास नहीं रखा , जो कि बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा ।
शाहजहां ने अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में कोहिनूर को जड़वाया था ।
‘कोहिनूर’ की ब्रिटेन की महारानी के मुकुट तक पहुँचने की दास्तान
ईरानी शासक नादिर शाह ने शाहजहाँ को पराजित कर हीरे को आपने साथ फारस ले गया , नादिर शाह की हत्या के बाद, यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में पहुंचा। उसके बाद शुजा शाह ने पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह से मदद पाने के लिये कोहिनूर उन्हें सौप दिया
रंजीत सिंह जिन्होंने अपने आप को पंजाब का महाराजा घोषित किया था , उन्हेंने अपनी वसीयत में ,कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अन्ततः वह पूरे ना हो सके।
29 मार्च,1849 को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। तथा लौहार संधि निकल कर सामने आयी इस संधि में मुख्य बात कोहिनूर रतन लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौपना था ।
महारानी विक्टोरिया जिन्हे यह हीर भेंट स्वरुप लौहार संधि के तहत ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा भेंट किया गया , महारानी विक्टोरिया से महारानी अलेक्जेंड्रिया , महारानी मैरी , महारानी एलिज़ाबेथ के किरीट (ताज़) की शोभा बनाया गया।
पाकिस्तान ने भी किया था दावा
कोहिनूर की कहानी जितनी लम्बी और रोचक है उसमे उतने ही विवाद हैं , इस पर कई देश अपना दावा करते है उन्ही में से एक हमारा पडोसी मुल्क पाकिस्तान हैं , 1976 पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ज़ुल्फीकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री जिम कैलेघन को पाकिस्तान को वापस करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने एक नम्र “नहीं” में उत्तर दिया।