नए चेहरों पर दांव: राष्ट्रीय कार्यकारिणी से अखिलेश ने साधे सियासी समीकरण
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल 63 चेहरों में 10 यादव, आठ मुस्लिम, पांच कुर्मी, चार ब्राह्मण, सात दलित चेहरे और 16 अति पिछड़े वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। जबकि पिछली बार की 55 सदस्यीय कार्यकारिणी में सात यादव, आठ मुस्लिम, तीन ब्राह्मण, तीन कुर्मी, पांच दलित और 11 अन्य पिछड़े वर्ग के लोग थे।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिए सियासी समीकरण साधने की कोशिश की है। जाति, उम्र, समाज का पूरा ध्यान रखा गया है। पुराने चेहरों को तवज्जो देते हुए सक्रिय भूमिका निभाने वालों को पदोन्नति दी है। विभिन्न दलों से आए उन्हीं नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी गई है, जो वोटबैंक जोड़ने के लिहाज से अहम हैं।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल 63 चेहरों में 10 यादव, आठ मुस्लिम, पांच कुर्मी, चार ब्राह्मण, सात दलित चेहरे और 16 अति पिछड़े वर्ग के लोगों को शामिल किया गया है। जबकि पिछली बार की 55 सदस्यीय कार्यकारिणी में सात यादव, आठ मुस्लिम, तीन ब्राह्मण, तीन कुर्मी, पांच दलित और 11 अन्य पिछड़े वर्ग के लोग थे।
कार्यकारिणी में पवन पांडेय, हाजी इरफान अंसारी जैसे चेहरों को शामिल करके युवाओं को जोड़े रखने की कवायद की गई है। कार्यकारिणी की घोषणा विधान परिषद शिक्षक एवं स्नातक खंड की पांच सीटों के मतदान के ठीक एक दिन पहले की गई है। ऐसे में सपा ने चुनाव से ठीक पहले कार्यकारिणी में हर वर्ग की भागीदारी का सबूत देकर इस चुनाव में भी बढ़त लेने की कोशिश की है।
परिवार को तवज्जो, महिलाओं को भी भागीदारी
राष्ट्रीय कार्यकारिणी में परिवार के सदस्यों को तवज्जो दी गई है। अभी तक अखिलेश यादव के बाद प्रो. रामगोपाल यादव और उनके बेटे अक्षय यादव शामिल थे। लेकिन अब शिवपाल सिंह यादव, तेज प्रताप यादव और धर्मेंद्र यादव को भी शामिल किया गया है। इस तरह 10 यादवों में छह तो परिवार के ही सदस्य हैं।
सैफई परिवार के तीनों युवा चेहरों को कार्यकारिणी सदस्य बनाकर सामंजस्य बनाए रखने का भी प्रयास किया गया है। कार्यकारिणी में पहले की तरह ही पांच महिलाओं को भी शामिल किया गया है। जूही सिंह के स्थान पर महिला सभा की निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष लीलावती कुशवाहा को जगह दी गई है, अनु टंडन को राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी गई है।
लेकिन शिवपाल के साथियों को जगह नहीं
सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवपाल को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है, लेकिन उनके साथियों को तवज्जो नहीं मिली है। सपा से अलग होते समय शिवपाल के साथ जाने वालों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से दूर रखा गया है। अब सभी की निगाहें प्रदेश कार्यकारिणी पर टिकी हैं, क्योंकि शिवपाल बार-बार यही दुहाई देते रहे हैं कि उनके साथ जुड़े लोगों को भी सपा में समायोजित किया जाएगा।
कितनी कारगर होगी दलित राजनीति
सपा अभी तक जातीय तौर पर अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग की राजनीति करती रही है। अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव 2022 से लगातार अंबेडकरवादियों और लोहियावादियों को एक मंच पर लाने की दुहाई देते रहे हैं। अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी में वर्षोर्ं से कार्य कर रहे दलित नेताओं को तवज्जो देने के बजाय बसपा पृष्ठभूमि से निकले नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। ऐसे में अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि यह कदम पार्टी के लिए कितना फायदेमंद होगा।