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लाड़ली बहनों के लिए 3 हजार की सहायता, विधानसभा चुनाव से पहले राशि बढ़ाने की योजना, 60+ महिलाओं के लिए नई स्कीम भी

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भोपाल 
एक तरफ मप्र के कैबिनेट मंत्री विजय शाह का लाड़ली बहनों को लेकर दिया बयान सुर्खियों में है तो दूसरी तरफ बीजेपी आने वाले तीन सालों में महिलाओं को साधने के लिए एक डिटेल रोडमैप बना रही है। बीजेपी की कोशिश है कि 2027 में होने वाले निकाय चुनाव तक कुछ राशि को और भी बढ़ाया जायेगा। 

वहीं सूत्रों का कहना है कि 60 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के लिए सरकार एक नई स्कीम लॉन्च कर सकती है। इस स्कीम में महिलाओं को कितना पैसा मिलेगा अभी इस पर विचार किया जा रहा है। साथ ही महिलाओं के स्व सहायता समूहों को भी सशक्त करने की तैयारी है। दरअसल, राजनीतिक दलों को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचाने में महिलाएं एक नया पावर सेंटर बनकर उभरी हैं।

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मप्र, महाराष्ट्र, दिल्ली के बाद अब बिहार का चुनाव इसका ताजा उदाहरण है जहां एनडीए ने महिलाओं को स्वरोजगार के लिए 10 हजार रु. देने का वादा किया । बिहार में एनडीए की जीत में इस स्कीम को गेमचेंजर माना गया है। जानकार भी मानते हैं कि अब बीजेपी के लिए अब सत्ता की चाबी किसानों से कहीं ज्यादा महिलाओं के हाथ में है। जो राजनीतिक रूप से ज्यादा वफादार मानी जाती हैं।

यही कारण है कि सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा भी महिलाओं के लिए ही है। आखिर किस तरह से आने वाले दिनों में महिलाएं राजनीति की दिशा बदलने वाली है। 

1.सप्लीमेंट्री बजट का 28 फीसदी महिला-किसानों को किसी भी सरकार की वास्तविक प्राथमिकताएं उसकी घोषणाओं में नहीं, बल्कि उसके बजट आवंटन में सबसे साफ रूप से झलकती हैं। मध्य प्रदेश की डॉ. मोहन यादव सरकार ने शीतकालीन सत्र में जो 13,476 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट पेश किया, वह इस नई रणनीति का पहला और सबसे बड़ा सबूत है।

इस भारी-भरकम राशि का लगभग 28% हिस्सा सिर्फ दो योजनाओं पर केंद्रित था। पहला, महिलाओं के लिए 'लाड़ली बहना योजना' जिसके लिए बजट में 1,794 करोड़ रु. का प्रावधान किया और दूसरा किसानों के लिए समर्थन मूल्य पर खरीदी, जिसके लिए 2,001 करोड़ रु. का प्रावधान किया गया।

हालांकि, यह तो सिर्फ एक बानगी है। जब कुल बजट के आंकड़े देखते हैं, तो तस्वीर और भी साफ हो जाती है-

    महिला एवं बाल विकास (जेंडर बजट): इस क्षेत्र का कुल बजट 1.23 लाख करोड़ का है। इसमें से 49,573 करोड़ सीधे तौर पर योजनाओं पर खर्च हो रहे हैं। इस विशाल राशि का सबसे बड़ा हिस्सा 'लाड़ली बहना योजना' का है, जिस पर अकेले 22 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। यह वह राशि है जो प्रदेश की 1.26 करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में हर महीने सीधे पहुंचती है। इसके अलावा लाड़ली लक्ष्मी योजना (1,183 करोड़ रु.) और अन्य योजनाएं भी शामिल हैं, जो महिला केंद्रित हैं।

    कृषि एवं किसान कल्याण: पहली नजर में इस सेक्टर का कुल बजट 1.27 करोड़ रुपए है, जो महिलाओं के बजट से थोड़ा अधिक दिखता है। मगर, जब हम योजनाओं पर सीधे खर्च की बात करते हैं, तो यह आंकड़ा घटकर 20,426 करोड़ रुपए रह जाता है। इसमें भी अटल कृषि ज्योति योजना (13,909 करोड़ रुपए) जैसी योजनाएं शामिल हैं, जो किसानों को सीधे नकद फायदा देने के बजाय बिजली सब्सिडी जैसी अप्रत्यक्ष सहायता प्रदान करती हैं। मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत किसानों को 5,220 करोड़ रुपए की सीधी आर्थिक सहायता दी जाती है।

यह तुलना साफ करती है कि भले ही कृषि का कुल बजट बड़ा दिखे, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर, सीधा नकद हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से महिलाओं पर किया जा रहा निवेश कहीं अधिक बड़ा, टारगेटेड और राजनीतिक रूप से असरदार है। जानकारों के मुताबिक बीजेपी यह समझ चुकी है कि सब्सिडी का अप्रत्यक्ष फायदा अक्सर राजनीतिक वफादारी में तब्दील नहीं होता, लेकिन खाते में आने वाली नकदी एक सीधा और भावनात्मक संबंध बनाती है।

2. जब 'लाड़ली बहनों' ने ईवीएम में किया कमाल महिलाओं के लिए बजट बढ़ाने के पीछे चुनाव में अप्रत्याशित फायदा भी है। यह केवल राजनीतिक पंडितों का अनुमान नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक विस्तृत रिसर्च रिपोर्ट 'लाड़ली बहना योजना' को मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत का सबसे प्रमुख और निर्णायक फैक्टर बता चुकी है। SBI ने अपनी रिपोर्ट में 2 पॉइंट्स को महत्वपूर्ण बताया है..

    गेम-चेंजर इफेक्ट: रिपोर्ट के अनुसार, जिन सीटों पर जीत का अंतर 10,000 वोटों से कम था, वहां बीजेपी की जीत की संभावना केवल 28% थी। लेकिन 'लाड़ली बहना इफेक्ट' के कारण यह संभावना बढ़कर 100% हो गई। यानी, इस योजना ने हारी हुई बाजी को जीत में बदल दिया।
    महिला वोटर ही भविष्य: रिपोर्ट ने यह भी भविष्यवाणी की है कि 2029 के बाद भारत के सभी चुनावों में महिला मतदाता ही निर्णायक भूमिका निभाएंगी।

चुनाव आयोग के आंकड़े भी इसी कहानी की पुष्टि करते हैं। 2018 की तुलना में 2023 में महिला मतदाताओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

    महिला मतदान में उछाल: 2018 में जहां 74.03% महिलाओं ने वोट दिया था, वहीं 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 76.03% हो गया। यह 2% की वृद्धि उन सीटों पर निर्णायक साबित हुई जहां जीत-हार का अंतर कम था।
    बढ़ता लिंगानुपात: चुनावी मैदान में महिला मतदाताओं का लिंगानुपात 2018 में प्रति 1000 पुरुषों पर 917 था, जो 2023 में बढ़कर 945 हो गया।

लोकनीति-CSDS का सर्वे इस चुनावी व्यवहार की और भी गहरी परतें खोलता है। सर्वे के अनुसार, बीजेपी को 47% महिलाओं ने वोट दिया, जबकि कांग्रेस को 43%। लेकिन सबसे दिलचस्प आंकड़ा योजना के लाभार्थियों का है-

    'लाड़ली बहना' की लाभार्थी: योजना का लाभ पाने वाली 81% महिलाओं में से 48% ने बीजेपी को वोट दिया।
    योजना से वंचित महिलाएं: जिन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिला, उनमें से 53% ने कांग्रेस को वोट दिया।

यह आंकड़ा साबित करता है कि यह योजना सीधे तौर पर वोटों में तब्दील हुई। इतना ही नहीं, जिन 29% महिलाओं ने आखिरी समय में अपना वोटिंग का फैसला किया, उनमें से 48% ने ईवीएम पर बीजेपी का बटन दबाया। यह दर्शाता है कि चुनाव से ठीक पहले खाते में आने वाली नकदी ने अनिश्चित मतदाताओं को बीजेपी के पाले में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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